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बैंक अकाउंट में लावारिस पड़े है 49000 करोड़ रुपये,अब मोदी सरकार ऐसे करेगी इस्तेमाल 

 नई दिल्ली. देश के अलग-अलग बैंकों और बीमा कंपनियों (Different Banks and Insurance Companies) के पास तकरीबन 49 हजार करोड़ रुपये लावारिस (Unclaimed Amounts) पड़े हुए हैं. इसका मतलब है कि इन रुपयों का कोई दावेदार नहीं है. यह बात मंगलवार को वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड (MoS Finance Bhagwat Karad) ने राज्यसभा सभा में एक लिखित जवाब में कहा. बता दें कि यह आंकड़ा 31 दिसंबर 2020 तक का है. बैं​कों में पड़े गैर दावे वाले अनक्लेम्ड डिपॉजिट का आंकड़ा हर साल लगातार बढ़ता ही जा रहा है. आरबीआई ने साल 2018 में सभी बैंकों को आदेश दिया था कि जिन खातों पर बीते दस सालों से कोई दावेदार सामने नहीं आया है, उनकी लिस्ट तैयार करके सभी बैंक अपनी-अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें

अपलोड की गई जानकारी में अकाउंट होल्डर्स के नाम, अड्रेस शामिल होंगे.


बैंकों में इतने हजार करोड़ रुपये लावारिस पड़े हुए हैं

रिजर्व बैंक की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार 31 दिसंबर 2022 तक अलग-अलग बैंकों के 8.1 करोड़ अकाउंट्स में 24356 करोड़ रुपये पड़े हैं, जिस पर दावा करने वाला कोई नहीं है. यानी तकरीबन हर खाते में 3000 करोड़ रुपये पड़े हैं. रिजर्व बैंक के मुताबिक, सरकारी बैंकों के 5.5 करोड़ अकाउंट्स में 16597 करोड़ रुपये पड़े हैं. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के 1.3 करोड़ खाते में 3578 करोड़ रुपये लावारिस पड़े हुए हैं.


वित्त राज्य मंत्री राज्यसभा में क्या कहा

वित्त राज्य मंत्री ने राज्यसभा के लिखित जवाब में कहा कि भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) के मुताबिक, सरकारी और प्राइवेट बीमा कंपनियों के पास 24586 करोड़ रुपये बिना दावे के पड़े हुए हैं. बता दें कि ये उन लोगों को पैसा है, जिन्होंने इंश्योरेंस तो कराया लेकिन, दो-तीन प्रीमियम भरने के बाद और प्रीमियम भरना छोड़ देते हैं या बहुतों को इंश्योरेंस के कागज खो जाता है और वह क्लेम नहीं कर पाते हैं.


साल 2018 में क्या बनी थी पॉलिसी

साल 2018 में देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के 47 लाख खातों (जमा राशि 1,036 करोड़ रुपये), केनरा बैंक के 47 लाख खातों (995 करोड़ रुपये) और पंजाब नेशनल बैंक के 23 लाख खातों (829 करोड़) का कोई दावेदार नहीं था. इसी तरह साल 2016 में यह आंकड़ा 8928 करोड़ रुपये था. साल 2017 में अनक्लेम्ड डिपॉजिट का आंकड़ा बढ़कर 11494 करोड़ रुपये हो गया. 2018 में यह आंकड़ा 26.8 फीसदी से बढ़कर 14578 करोड़ रुपये हो गया. साल 2019 और 2020 में भी यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही गया.


अनक्लेम्ड अमाउंट का क्या होता है?

जहां तक बैंकों में पड़े अनक्लेम्ड डिपॉजिट की बात है तो बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 में हुए संशोधन और इसी एक्ट के सेक्शन 26ए के इन्सर्शन के अनुरूप आरबीआई ने डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड (DEAF) स्कीम 2014 को बनाया है. इस स्कीम के तहत बैंक 10 साल या उससे ज्यादा समय से ऑपरेट नहीं किए गए सभी अकाउंट में मौजूद क्यूमुलेटिव बैलेंस को उसके ब्याज के साथ कैलकुलेट करते हैं और उस अमाउंट को DEAF में ट्रांसफर कर देते हैं. अगर DEAF में ट्रांसफर हो चुके अनक्लेम्ड डिपॉजिट का कस्टमर आ जाता है तो बैंक ब्याज के साथ कस्टमर को भुगतान कर देते हैं और DEAF से रिफंड के लिए दावा करते हैं. DEAF का इस्तेमाल डिपॉजिट के इंट्रेस्ट के प्रमोशन और इससे जुड़े अन्य आवश्यक उद्देश्यों के लिए होता है, जो कि आरबीआई सुझा सकता है.


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इंश्योरेंस कंपनियों के लावारिस पड़े पैसों का इस्तेमाल कैसे होता है

वहीं, इंश्योरेंस कंपनियों में पड़े अनक्लेम्ड अमाउंट की बात है तो इन कंपनियों को 10 साल से ज्यादा समय से पड़े अनक्लेम्ड अमाउंट को सीनियर सिटीजन वेलफेयर फंड (SCWF) में हर साल 1 मार्च या उससे पहले ट्रांसफर करना होता है. SCWF का इस्तेमाल सीनियर सिटीजन के कल्याण को प्रमोट करने वाली स्कीम्स में होता है. अगर बाद में कोई अनक्लेम्ड अमांउट के लिए क्लेम करता है तो इंश्योरेंस कंपनियों को प्रक्रिया के मुताबिक इन्वेस्टमेंट इनकम के साथ अनक्लेम्ड अमाउंट को भुगतान करना होता है.